मंगलवार, 18 नवंबर 2014

माँ.... !


पंछी गूंगे हो गए
चाँद-तारे खो गए  
जहाँ तक नज़र जाए  
ठूँठे से दरख़्त है  
मेरे बचपन का गाँव 
ज्यूँ काठ का हो गया 
जबसे आखिरी बार
उसकी गलियों से 
तुझे गुजरते देखा ....!

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 19 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. सच है
    माँ से रौनक बनी रहती है
    बहुत खूब !

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  3. बहुत संवेदनशील..... मन के सच्चे भावों की प्रस्तुति.....

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